BHAMRA BLOGS
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Monday, November 11, 2024
Retirement of Shri Satya Pal Singh (Bijnor)
बिजनौर।
भुइयार वेलफेयर एजूकेशनल सोसायटी की ओर से आयोजित सम्मान समारोह में मुख्य वक्ता दयाराम भामडा ने कहा है कि शिक्षा से ही समाज का विकास संभव है। सोसायटी द्वारा विद्युत विभाग से अधिशासी अभियंता के पद से सेवानिवृत सत्यपाल सिंह को अभिनंदन पत्र भेंट कर व शॉल ओढाकर सम्मानित किया गया।
रविवार को मोहल्ला शक्तिनगर में भुइयार एजूकेशनल वेलफेयर सोसायटी द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में मुख्य वक्ता दयाराम भामड़ा ने कहा कि बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए जन जागरण अभियान चलाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा से ही समझ में राष्ट्र का विकास होगा । समिति के महामंत्री केशव शरण ने सेवानिवृत्ति अधिशासी अभियंता सत्यपाल सिंह के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। कोषाध्यक्ष मास्टर तेजपाल सिंह. भुइयार ने समिति द्वारा किए गए अब तक कार्यों के बारे में सभी सदस्यों को विस्तार से जानकारी दी। इस मौके पर संगठनों को मजबूत करने पर जोर दिया गया सदस्य। इस मौके पर समिति के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार मुख्य वक्ता दयाराम भामड़ा व अन्य सदस्यों ने सेवानिवृत अधिशासी अभियंता सत्यपाल सिंह को अभिनंदन पत्र भेंट कर व शॉल ओढाकर सम्मानित किया।
इस मौके अधिशासी अभियंता सत्यपाल सिंह के पिताजी श्री प्रताप सिंह को शॉल ओढाकर सम्मानित किया गया। अधिशासी अभियंता सत्यपाल सिंह ने कहा कि समाज के विकास के लिए बच्चों को शिक्षा से जोड़ना जरूरी है । उन्होंने कहा की सेवा काल अब पूरा हो गया है वह समिति के साथ जुड़कर काम करेंगे। सोसायटी के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार की अध्यक्षता व महामंत्री केशव शरण के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में मास्टर ज्ञान सिंह, मनोज कुमार भुइयार, गिरिराज सिंह, उमेश कुमार ,कार्मेंद्र सिंह भुइयार, नरेंद्र कुमार, टीकम सिंह भुइयार, गजेंद्र सिंह एडवोकेट, अमित कुमार, सुनील कुमार, संदीप कुमार भुइयार, हरि प्रकाश ,अनिल कुमार, दीपक कुमार भुइयार, राहुल कुमार, और बताओ मनीष कुमार भुइयार, मनोज कुमार भुइयार आदि ने विचार रखें।
Sunday, October 27, 2024
कबीर गोष्ठी का आयोजन
आज दिनांक 27 अक्टूबर 2024 को कृष्णा फॉर्म निकट सेंट मैरी स्कूल बिजनौर में एक कबीर गोष्ठी का आयोजन भुइयार समाज द्वारा किया गया।
Friday, October 25, 2024
भुइयार एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा दिनांक 24.10.2024 को ग्राम धौकलपुर (बिजनौर) में एक गोष्ठी
भुइयार एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी (बिजनौर) द्वारा दिनांक 24.10.2024 को ग्राम धौकलपुर (बिजनौर) में एक जागरूकता गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्टी द्वारा पड़ोसी जनपदों में हुए हाल ही के घटनाक्रम के परिपेक्ष में समाज में गांव-गांव जागरूकता कार्यक्रम चलाने के बारे में विचार विमर्श किया है।
छोटे बच्चों को एक शिक्षा किट भी वितरित की गई।
इस संबंध में आज के समाचार पत्रों की सुर्खियां भी साथ में संलग्न है।
Sunday, August 18, 2024
सरकंडा और मेरा स्कूल टाइम
सरकंडा और मेरा स्कूल टाइम
साथियों सरकंडे से तो आप भली भांति परिचित ही होंगे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ आदि जनपदों में इसे सरकड़ा अथवा कहीं-कहीं पर झूंड भी कहा जाता है। हो सकता है सरकंडे को अलग-अलग प्रदेशों के जनपदों में अलग-अलग भाषा में पुकारा जाता हो। परंतु सरकंडा एक व्यापक शब्द है जोकि हिंदी भाषी प्रदेशों में लगभग सभी जगह प्रयोग में लाया जाता है। सरकंडे को उगाने का अधिकतर उपयोग उन जगहों पर होता था, जहां पर एक किसान के चक से दूसरे किसान के चक के बिच में अथवा गांव के कच्चे रास्ते के दोनों ओर बड़ी-बड़ी मेड, जिसे बिजनौर की स्थानीय भाषा में खंदक कहा जाता था, उन पर उगाया जाता था।
सरकंडा उगाने के अनेकों लाभ भी थे, साथ-साथ इससे नुकसान भी बहुत होते थे। पहले लाभ की बात करें तो, एक किसान के मवेशी दूसरे किसान के खेत में नहीं जा सकते थे। क्योंकि यहां पर एक दूसरे के खेतों को विभाजित करने के लिए सरकंडे की बाढ़ लगा दी जाती थी। यानी सरकंडा चक के बाढ़ के रूप में कार्य करता था। दूसरा सरकंडे की जड़े पानी से मिट्टी के कटाव को भी रोकने का कार्य करती थी। तीसरा सरकंडे का सबसे बड़ा उपयोग छप्पर बनाने में होता था। उस समय गांव में चाहे मजदूर हो अथवा किसान हो 90% लोगों के कच्चे मकान थे। अधिकतर छप्पर के घर हुआ करते थे। चाहे मवेशियों के लिए आशियाना हो अथवा मनुष्य का आश्रय हो सभी लोग छप्पर के घरों में ही अपना रहन-सहन करते थे। छप्पर बनाने में सरकंडे की पत्तियां उसका तना एवं उसकी डंठल जिसे मूंज कहा जाता था सभी उपयोग में लाई जाती थी। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सरकंडा गांव के मजदूरों, किसानो आदि के लिए एक तरह से उस दौर की लाइफ लाइन थी। परंतु धीरे-धीरे गांव भी संपन्नता की ओर अग्रसर हो गए और कच्चे मकान एवं छप्परों की जगह पक्के मकान बन गए।
अब गांव में कहीं भी सरकंडे का छप्पर दिखाई नहीं देता है। पक्का मकान बनने के उपरांत एक बार ही अधिक लागत लगती है। उसके बाद व्यक्ति निश्चिंत हो जाता है बार-बार उसकी मरम्मत की आवश्यकता नहीं होती। इस कारण से लागत कम हो जाती है। परंतु जब सरकंडे से बने छप्पर हुआ करते थे उनको प्रतिवर्ष नए सिरे से उसको बनाना और बांधना पड़ता था, जिससे हर साल उसकी लागत में इजाफा हो जाता था। इस कारण से भी लोगों ने धीरे-धीरे छप्पर और कच्चे मकानों को बाय-बाय कह दिया और उनकी जगह पर पक्के मकान और आलीशान कोठियां बन गई। इस वजह से लोगों ने अपनी बड़ी-बड़ी मेड पर लगे सरकंडे के पौधों को समाप्त कर दिया है। सरकंडा उगाने से कुछ नुकसान भी होते थे। प्रथम यह पौधा अधिक दूरी में फैल जाता था, जिस कारण से खेती की जमीन कम हो जाती थी। द्वितीय जहां पर सरकंडे को लगा दिया जाता था, उसके दोनों और कम से कम दो से तीन मीटर तक पैदावार नहीं होती थी। इस कारण से लोगों ने अपने खेतों से सरकंडे को समाप्त कर दिया है। ग्रामीण रास्तों के दोनों तरफ जो सरकंडे लगे हुए थे, वहां पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गांव की सभी सड़कों का डामरीकरण होने के कारण सरकंडे को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया, और वहां पर पक्की सड़क बना दी गई इस कारण से अब गांव में भी सरकंडा दिखाई नहीं देता है। अब सरकंडा केवल नदियों के किनारे अथवा जहां पर बंजर भूमि है केवल वहीं पर दिखाई देता है। गांव में उस जमाने में कच्चे और छप्पर के घर हुआ करते थे। सरकंडे का मेरे जीवन से बहुत ही नजदीकी नाता रहा है। यह 70 का दशक था जब मैंने 1975 में कक्षा पांच उत्तीर्ण किया। अब मुझे कक्षा छ: मैं प्रवेश लेने के लिए अपने गांव बाहुपूरा से 8 किलोमीटर दूर बेगमपुर शादी उर्फ रामपुर (बिजनौर) में प्रवेश लेना पड़ा।
मैं अपने गांव बाहुपूरा से अकेला ही विद्यार्थी था जिसने आदर्श जूनियर हाई स्कूल रामपुर (बिजनौर) में कक्षा 6 में प्रवेश लिया था। मेरे गांव से कोई भी विद्यार्थी इस स्कूल में पढ़ने नहीं जाता था। उस समय परिवहन की कोई व्यवस्था न होने के कारण मुझे अपने गांव से अकेले ही पैदल स्कूल आना-जाना पड़ता था। अत्यधिक निर्धनता होने के कारण मेरे पास साइकिल की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। यह दूरी लगभग एक ओर से 8 किलोमीटर थी। यह स्कूली यात्रा मेरी जुलाई 1975 से शुरू होकर जून 1980 तक निर्बाध रूप से चलती रही।
स्कूल आने-जाने के लिए मौसम के हिसाब से मेरे दो रास्ते थे। ठीक उसी तरह से जिस तरह से जम्मू कश्मीर की राजधानी ग्रीष्मकालीन और शरदकालीन हुआ करती थी। एक रास्ता बरसात के मौसम का था जोकि बाहुपुरा गांव से चलकर आलमपुर, बान गढ़ी और रामपुर तक, दूसरा रास्ता ग्रीष्मकालीन और सर्दियों का था जोकि बाहुपुरा गांव से उत्तर-पूर्व दिशा की ओर एक पगडंडी जोकि खेतों से होकर श्री चंद देवता तक जाती थी, उसके बाद बान नदी पार करके धनौरी गांव होते हुए रामपुर तक। यह रास्ता मेरे गांव से धनौरी गांव तक पगडंडी का रास्ता था। जिसे शहरी भाषा में पगडंडी एवं बिजनौर की भाषा में बटिया कहा जाता है। धनौरी गांव से आगे रामपुर तक कच्ची रोड थी।
दोनों ही रास्तों पर मुझे सरकंडे से रूबरू होना पड़ता था। मेरा स्कूल सुबह 8:00 बजे लगता था जिस कारण से मुझे सुबह 7:00 बजे से पहले तैयार होकर घर से निकालना पड़ता था। दोनों रास्तों में ही बहुतायत में सरकंडे थे। बाहुपुरा गांव से आलमपुर (आल्लोपुर) तक कच्ची रोड थी जिसको बिजनौर की स्थानीय भाषा में लीक बोला जाता था। कच्चे रास्ते में अत्यधिक रेत होने के कारण जब बैलगाड़ियां अथवा भैंसा बुग्गी उस रेत भरे रास्ते पर चलती थी, तो उनके पहियों से रास्ते में गहरे गहरे निशान पड़ जाते थे, उसको लीक बोला जाता था। उस रास्ते के दोनों तरफ ऊंची- ऊंची सरकंडों की बाह होती थी। मेरे गांव से आलमपुर गांव तक सारे रास्ते में रेत ही रेत होता था। गांव के बाहर से निकलते ही सरकंडे से रूबरू होना पड़ता था।
बरसात का मौसम समाप्त होने के बाद सितंबर और अक्टूबर महीने में स्थिति भयंकर होती थी। उस समय सरकंडे की पत्तियां लंबी-लंबी और बड़ी होती थी। वह पूरे रास्ते को दोनों तरफ से घेर लेती थी, सरकंडो के पत्तियों के ऊपर ओस की बूंदें ऐसी लगती थी मानो मोती लटक रहे हो। जब सूरज की किरणें निकलती थी और उन बूंदों पर पड़ती थी तो बूंदें प्रिज्म की तरह कार्य करते हुए रंग बिरंगी और मनमोहक लगती थी। उस समय उस रास्ते को पार करना बड़ा कष्टदाई होता था।
सुबह-सुबह जब मैं स्कूल जाता था तो साथ में एक डंडा रखता था। उस डंडे से सरकंडे की पत्तियों पर लगी ओस की बूंदों को हटाता चलता था। जिससे मेरे कपड़े गीले नहीं हो पाते थे, यह कार्य रोजमर्रा का था। और इस तरह अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ता जाता था। आलमपुर से आगे निकलकर भी यही कार्य दोहराना पड़ता था । परंतु यहां पर रास्ते की चौड़ाई अधिक होने के कारण सरकंडा थोड़ा दूर होता था जिससे अधिक असुविधा नहीं होती थी। उस समय किरतपुर- नगीना मार्ग पक्का नहीं हुआ था यह कच्चा मार्ग ही था।
समान स्थिति तब होती थी जब मैं वाया धनौरी होकर स्कूल जाता था। उस रास्ते में भी सरकंडे से रूबरू होना पड़ता था। यह मेरे जीवन का बहुत ही कड़वा अनुभव था। कभी-कभी मेरे स्कूल जाने से पहले कोई बैलगाड़ी अथवा भैंसाबूग्गी उस रास्ते से निकल जाती थी, तो मुझे बहुत सुकून मिलता था। क्योंकि उनके पहले जाने से सरकंडे की पत्तियों पर लगी ओस की बूंदें नीचे गिर जाती थी। तब मैं आराम से निकल जाता था, परंतु यदि सुबह-सुबह पहले मुझे जाना पड़ता था तो उस समय बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता था। स्कूल जाते-जाते मेरे कपड़े भीग जाया करते थे। मैं हमेशा अपने बस्ते (बैग) में एक पॉलिथीन का बैग रखता था। इस पॉलिथीन बैग में मैं अपनी सारी किताबें पैक करके रखता था, ताकि मेरी किताबें सुरक्षित रह सके। यह पॉलिथीन बैग बारिश से भी किताबों को बचता था। हालांकि बरसात के मौसम में मेरे पास एक छाता हुआ करता था परंतु उस समय छाते में पैराशूट कपड़ा प्रयोग नहीं होता था, सूती कपड़ा ही छाते में प्रयोग किया जाता था, जिस कारण से बरसात होने पर ज्यादातर पानी छाते के कपड़े में छनकर कपड़ों को भीगा दिया करता था।
सरकंडा सर्दी के मौसम में तो इस तरह से परेशान करता ही था, परंतु सर्दी निकालने के बाद मार्च अप्रैल में सरकंडे को काटकर एकत्रित करना पड़ता था। गांव के ग्रामीण परिवेश के सभी लोग बरसात आने से पहले अपने घरों के चप्परों को पुनः बांधने के लिए सरकंडा इकट्ठा कर लेते थे, जिससे बरसात के मौसम में आराम और सुकून से अपने घरों में जीवन व्यतीत कर सके। इसी वजह से अप्रैल और मई महीने में सरकंडे को काटकर उनके छोटे-छोटे बंडल जिन्हें बिजनौर की स्थानीय भाषा में पुले कहा जाता है, बना देते थे। मेरा भी इस कार्य में पूरा योगदान होता था। मैं भी अपने घर के छप्परों को दुरुस्त करने के लिए सरकंडे को काटता था। इसके बाद बरसात आने से पहले ही अपने घर के सभी छप्परों को नए सिरे से बांध देता था। इस कार्य में भी मुझे महारत हासिल थी। छप्पर को बांधना भी एक कला थी, जिससे बरसात के मौसम में छप्परों से पानी नीचे ना टपक पाए। गांव में सुंदर और टिकाऊ छप्पर बांधने के अच्छे कामगार बहुत ही कम होते थे।
दयाराम सिंह भामड़ा
हरिद्वार
संस्मरण कबीर जन्मोत्सव बिजनौर
संस्मरण: कबीर जन्मोत्सव बिजनौर
इस वर्ष जेयष्ठ माह की पूर्णिमा 22 जून 2024 को पड़ रही थी। प्रतिवर्ष जेयष्ठ माह की पूर्णिमा को ही सदगुरु कबीर साहेब जी का जन्मोत्सव पूरे देश में मनाया जाता है। इस वर्ष बिजनौर भुइयार समाज ने भी हरिद्वार की तर्ज पर बिजनौर शहर में कबीर जन्मोत्सव पर एक भव्य शोभायात्रा अर्थात प्रभात फेरी निकालने का विचार बनाया था। इसी कारण बिजनौर के युवा साथियों ने बहुत मेहनत कर पूरे जनपद बिजनौर में एवं आसपास के जनपदों में भी प्रचार प्रसार किया था। वैसे कबीर जन्मोत्सव तो पिछले 15 वर्षों से भुइयार समाज बिजनौर में मनाता आ रहा है। परंतु इस बार शोभायात्रा का कार्यक्रम प्रथम बार हो रहा था। कार्यक्रम की अनुमति प्रशासन से पहले ही ले ली गई थी। इस कार्यक्रम के अतिरिक्त एक कार्यक्रम ग्राम मुकीमपुर धारू उर्फ धारूवाला बिजनौर में भी था। जिसमें कबीर जन्मोत्सव के उपलक्ष में भुइयार धर्मशाला का उद्घाटन भी होना था। इन दोनों कार्यक्रमों की सूचना मेरे पास पहले से ही आ चुकी थी। इस कारण मैंने अपना मन बिजनौर के दोनों कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए बना लिया था। हालांकि कबीर जन्मोत्सव कार्यक्रम हरिद्वार में स्थित श्री कबीर आश्रम धर्मार्थ ट्रस्ट ऋषिकुल हरिद्वार में भी था, परंतु इस बार मन में था कि बिजनौर के दोनों कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर शाम को हरिद्वार के कार्यक्रम में सम्मिलित हो जाऊंगा। 22 जून 2024 का दिन आ गया, मैं बिजनौर जाने के लिए उत्सुक था। हरिद्वार से सुबह जल्दी ही निकल जाना चाहता था, क्योंकि आजकल सप्ताहांत में हरिद्वार में आने वाले श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जमा हो रही थी। जिस कारण हरिद्वार में जाम की स्थिति बनी रहती है। मैं सुबह उठा और तैयार होकर अपनी गाड़ी से 7:00 बजे के आसपास शिवालिक नगर से बिजनौर के लिए निकल गया। मैंने एक बार तो सोचा कि जाम से बचने के लिए वाया रायसी बालावाली चला जाए, परंतु मैंने गूगल मैप पर हरिद्वार में जाम की स्थिति के बारे में सर्च किया, तो हरिद्वार में ट्रैफिक सामान्य था। कहीं-कहीं पर थोड़ा बहुत जाम था। मैंने निर्णय लिया कि हरिद्वार से हाईवे पर ही चला जाए। मैंने अपनी गाड़ी का स्टेरिंग हरिद्वार की ओर मोड़ दिया। मेरी गाड़ी कुछ ही देर में हाईवे पर फराटे भरने लगी। प्रेम नगर से श्रद्धानंद चौक तक कोई जाम की स्थिति नहीं थी। परंतु जैसे-जैसे मैं चंडीगढ़ घाट पुल की ओर बढ़ रहा था जाम की स्थिति बढ़ने लगी थी। एक बार तो मन में आया कि वाया हरिद्वार चलने का मेरा निर्णय गलत साबित हो गया। परंतु अब किया भी क्या जा सकता था? मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। यह अच्छा रहा, कि ट्रैफिक रुका नहीं धीरे-धीरे चलता रहा और इस तरह चलते- चलते मैंने लगभग 20 मिनट में चंडीपुल को पार कर लिया। चंडीपुल पार करने के बाद जब मेरी गाड़ी चंडी रोप-वे के पास पहुंची, तो वहां पर भी जाम का सामना करना पड़ा। गनीमत यह रही कि जाम में अधिक देर इंतजार नहीं करना पड़ा। मैंने श्यामपुर पार कर लिया था। अब कोई जाम की स्थिति नहीं थी। मैंने अपनी गाड़ी को हाईवे पर दौड़ना शुरू कर दिया, क्योंकि मैं सोच रहा था कि कबीर जन्मोत्सव शोभायात्रा का जो समय आयोजिकों ने निर्धारित किया था वह 9:00 बजे का था, उस समय तक मैं बिजनौर पहुंच जाना चाहता था। साथ-साथ मेरा अनुभव था कि इस तरह के कार्यक्रम अक्सर समय पर नहीं होते। यह सोचकर मैंने अपनी गाड़ी सामान्य गति से चलानी जारी रखी। मैंने 8:30 बजे भागूवाला क्रॉस कर दिया, तथा नांगल पहुंचते-पहुंचते 9:00 बज चुके थे। मैंने जैसे ही चंदक रेलवे फाटक पर किया तो सामने दो बड़े-बड़े होर्डिंग जोकि कबीर जन्मोत्सव को विज्ञापित कर रहे थे दिखाई दिए। बड़े-बड़े होल्डिंग देखकर मन को अच्छा लगा कि अब धीरे-धीरे भुइयार समाज में जागरूकता आ रही है। मैं सुबह 10:00 से 10:15 बजे के आसपास बिजनौर पहुंच चुका था। मैं सीधा नुमाइश ग्राउंड चौराहे पर पहुंच गया। मैंने देखा चौराहे पर कोई हलचल नहीं थी। ट्रैफिक सामान्य चल रहा था, परंतु लाउडस्पीकर की आवाज आ रही थी जिसमें “भुइयार समाज जिंदाबाद” “कबीर साहेब अमर रहे” के नारे गुंजायमान थे। मैंने अंदाजा लगाया कि शोभायात्रा यहां से आगे जा चुकी है। मैं लेट तो हो गया ही था, फिर भी मैंने चौराहे पर खड़े एक पुलिस मैन से पूछा कि भाई आज जो कबीर जन्मोत्सव शोभायात्रा भुइयार समाज का प्रोग्राम था, वह कहां तक पहुंच गया है? उसने बताया कि अभी शोभायात्रा आगे नहीं गई है। सभी लोग नुमाइश ग्राउंड में एकत्रित हैं। मैंने अपनी गाड़ी को प्रदर्शनी मैदान की ओर मोड़ दिया। वहां पहुंचकर मैंने देखा कि अत्यधिक गर्मी के बावजूद भी भुइयार समाज के व्यक्ति हजारों की संख्या में वहां लगे पंडाल में एकत्रित थे। प्रदर्शनी मैदान के पंडाल में देखने को मिला कि पुरुषों के अतिरिक्त महिलाएं भी हजारों की संख्या में मौजूद थी। सभी के हाथों में संत कबीर साहिब एवं सतनाम लिखी झंडियां एवं गले में “कबीर साहेब की जय” लिखे सफेद रंग के पट्टे पड़े हुए थे। जो युवा साथी वहां पर मौजूद थे उन सभी ने “भुइयार समाज बिजनौर” लिखी, टी-शर्ट पहन रखी थी। पूरा प्रदर्शनी मैदान “भुइयार समाज जिंदाबाद” एवं “सतगुरु कबीर साहेब जी की जय” के नारो से गूंज रहा था। प्रदर्शनी मैदान में लगभग 20 से 25 ट्रैक्टर ट्राली जिन पर “भुइयार समाज जिंदाबाद” एवं सदगुरु कबीर साहेब जी द्वारा रचित दोहे लिखे, बैनर लगे हुए थे। लगभग इसी संख्या में चार पहिया वाहन भी थे, उन सब पर भी बैनर लगे हुए थे। मोटरसाइकिल भी सैकड़ो की संख्या में थी। मैं जब वहां पहुंचा तो सभी लोगों ने मेरा स्वागत किया और कहा कि आपका धन्यवाद आप हरिद्वार से चलकर यहां पहुंचे हैं। वहां उपस्थित जन समूह की मैंने कुछ वीडियो एवं फोटो लिए। शोभायात्रा का शुभारंभ जिला पंचायत अध्यक्ष श्री सकेंद्र प्रताप जी द्वारा फीता काटकर किया गया। ब्रास बैंड शोभा यात्रा की और भी शोभा बढ़ा रहे थे। बैंड सतगुरु कबीर साहिब जी के रचित दोहों, साखियों आदि पर बजाए जा रहा था। शोभायात्रा प्रारंभ हो चुकी थी, क्योंकि मुझे धारूवाला गांव में भी जाना था, वहां पर भुइयार धर्मशाला का उद्घाटन होना था। वहां से भी मेरे पास आयोजक मंडल के फोन आ रहे थे। दोपहर के 11:00 बज गए थे। मैंने अपनी गाड़ी उठाई और चल दिया मंडावली गांव की ओर। बिजनौर शहर से कुछ दूरी पर जाने के बाद देखा कि सड़क बहुत खराब है। मैं आराम-आराम से अपनी गाड़ी चलाता हुआ मंडावली गांव में पहुंच गया। मंडावली गांव से धारूवाला गांव आधा किलोमीटर की दूरी पर था। मेरे पास बार-बार साथियों के फोन आ रहे थे, सड़क खराब होने के कारण रास्ते में समय भी अधिक लग गया था। मंडावली गांव पार करके मैं कुछ ही समय में धारूवाला गांव पहुंच गया। वहां पहुंचने पर सभी आयोजक बहुत खुश हुए और गाड़ी से उतरते ही फूल मालाओं से लाद दिया, साथ में आयोजक मंडल एवं दो ढोल वाले मेरे साथ-साथ “कबीर साहिब की जय” एवं “भुइयार समाज जिंदाबाद” के नारे लगाते हुए, मुझे मंच तक ले गए। मंच पर लोक दल पार्टी के जाने-माने नेतागण एवं भुइयार समाज के प्रबुद्ध जन विराजमान थे। मुझे वहां जाने पर पता चला कि मेरा नाम मुख्य अतिथि के लिए प्रस्तावित है। मंच पर आसीन सभी साथियों ने अपने उद्बोधन में श्री कबीर साहिब जी के जीवन पर प्रकाश डाला एवं उपस्थित जनसमूह से कबीर साहिब जी के बताएं मार्गों पर चलने का आह्वान किया। धारूवाला गांव के कार्यक्रम में भी काफी संख्या में लोग मौजूद थे। धर्मशाला के उद्घाटन के बाद भंडारे का कार्यक्रम था। वहां पर उपस्थित जनसमूह ने जिसमें गांव वाले लोग भी सम्मिलित थे, भंडारे का आनंद लिया। इसके बाद मैं वहां से वापस बिजनौर के लिए चल दिया। जब मैं बिजनौर पहुंचा, तो देखा शोभायात्रा भी राज मिलन बैंकट हॉल पहुंच चुकी थी। वहां पर भारी संख्या में भीड़ थी। सभी लोग अति उत्साहित थे, खासकर युवा वर्ग। एक-एक कर सभी प्रबुद्ध जनों के भाषण हो रहे थे। महंत ब्रह्म दास जी के प्रवचन के बाद समारोह का समापन किया गया। राज मिलन वेंकट हॉल के आस-पास रोड के दोनों ओर वाहनों की इतनी भीड़ थी, कि मुझे अपनी गाड़ी पार्क करने के लिए रेलवे फाटक के पास जाना पड़ा। आज के कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी भी काफी संख्या में थी। महिलाओं से बैंक्विट हॉल का आधा हिस्सा खचाखच भरा हुआ था, पैर रखने के लिए भी जगह नहीं थी। बैंकट हॉल के आधे हिस्से में पुरुष विराजमान थे वहां पर भी भीड़ अत्यधिक थी। पुरुषों के बैठने के लिए जगह नहीं मिल रही थी, तो अधिकतर पुरुष बाहर खड़े थे। समारोह में कई साथियों से मुलाकात हुई। सभी ने आज हुए कार्यक्रम के बारे में चर्चा करते हुए बताया, कि आज का कार्यक्रम बहुत ही भव्य था। युवा वर्ग बहुत उत्साहित था। आज इस समारोह में भुइयार युवा वर्ग का जोश देखने को मिला। समारोह संपन्न होने के बाद मुझे अब वापस हरिद्वार भी आना था, क्योंकि हरिद्वार के कबीर जन्मोत्सव कार्यक्रम में शामिल होना था। इस कारण मैंने विशाल जी से कहा कि मैं वापस हरिद्वार जा रहा हूं। तब वह कहने लगे कि घर पर चाय पीकर चले जाना। तब हम दोनों बिजनौर स्थित उनके रूम पर पहुंच गए और चाय नाश्ता करके मैं वापस हरिद्वार के लिए यह सोचकर, कि हरिद्वार में जाम की स्थिति होगी, वाया बालावाली होते हुए रायसी रेलवे फाटक पर पहुंचा, तो पता चला कि यह रेलवे फाटक कार्य प्रगति पर होने के कारण तीन दिनों के लिए बंद है। मैं रायसी से वापस कुड़ी, महाराजपुर, निरंजनपुर एवं शाहपुर गांव होते हुए हरिद्वार पहुंच गया। मैं सीधा श्री कबीर आश्रम ऋषिकुल हरिद्वार पहुंचा, तो देखा शोभायात्रा तब तक वापस आश्रम तक नहीं आई थी। मैं आश्रम में इंतजार कर एवं वहीं पर दोस्तों के साथ बातचीत करके समय व्यतीत किया। तब तक शोभा यात्रा भी आश्रम पहुंच चुकी थी। इसके बाद आरती हुई, कुछ देर साथियों के साथ बातचीत करने के बाद मैं दूसरे आश्रम में चला गया, वहां पर भंडारे का कार्यक्रम था। मैंने साथियों संग भंडारे का आनंद लिया। और वापस रात्रि 8:00 बजे अपने घर आ गया। आज मैंने तीन प्रोग्राम अटेंड किया मैंने पाया, कि बिजनौर के दोनों कार्यक्रम भव्य रूप में संपन्न हुए। वहां के लोगों में उत्साह देखा गया। लोग दूर-दूर से शोभायात्रा में पहुंचे थे। ऐसा पहली बार देखने को मिला था कि इतनी बड़ी संख्या में भुइयार समाज के लोग एक स्थान पर एकत्रित हुए थे। प्रशासन में भी इसका संदेश जरूर पहुंच गया होगा। भुइयार समाज के जलसों में इस तरह की भीड़ 1990 के दशक या उससे पहले मिला करती थी, या फिर भुइयार एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा प्रारंभ किया गया, मेधावी छात्र-छात्राओं के सम्मान समारोह में इतनी भीड़ देखने को मिलती है। बिजनौर जनपद में निवास करने वाले भुइयार समाज के लोगों के लिए यह सुखद शुरुआत थी। इसके लिए आयोजक मंडल ने दिन-रात की मेहनत की थी, तब यह मुकाम पाया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आगे भी बिजनौर निवासी इसी तरह से सदगुरु कबीर जन्मोत्सव मनाते रहेंगे। जिससे जनपद बिजनौर वासियों के साथ-साथ दूसरे जनपदों में निवास करने वाले भुइयार एवं कोरी समाज के लोग भी धर्म लाभ उठाते रहेंगे।
दयाराम सिंह भामड़ा
हरिद्वार
22 Jun 2024 Kabir Jayanti in Bijnor
22 जून 2024 को बिजनौर शहर में एवं धारूवाला गांव में संत कबीर साहिब जी के जन्महोत्सव बडी़ धूमधाम से मनाया गया। बिजनौर शहर में विभिन्न जनपदों से भारी संख्या में भुइयार समाज के लोग एकत्रित हुए। शहर में एक भव्य जुलूस का आयोजन किया गया । जुलूस में ट्रैक्टर ट्राली, गाड़ियां एवं बाइकों पर नौजवान बैठे हुए थे। सभी ने "भुइयार समाज बिजनौर" की टीशर्ट पहनी हुई थी। तथा सभी के हाथों में संत कबीर साहेब की झंडा एवं भुइयार समाज के बैनर लिए हुए थे। लगभग 5000 व्यक्ति बिजनौर शहर में एकत्रित हुए। शहर की मुख्य मुख्य मार्गो से होते हुए राजमिलन बैंकट हॉल में जुलूस का समापन हुआ। उसके बाद समाज की विचार गोष्ठी राज मिलन बैंकट हॉल में की गई। इसी कड़ी धारूवाला गांव में भुइयार समाज की धर्मशाला का उद्घाटन किया गया। उसमें गोष्ठी में मैं मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहा।
Sunday, June 16, 2024
Sant Kabir Jayanti on 22.06.2024 in Bijnor
इस बार कबीर जयंती का प्रोग्राम 22 जून 2024 को बहुत ही धूमधाम से बिजनौर, हरिद्वार और सहारनपुर जनपदों में मनाया जा रहा है। ज्येष्ठ पूर्णिमा की तारीख, जो की 22 जून को पड़ रही है इस दिन बहुत ही जोर-शोर से कबीर साहेब के जन्मदिन की तैयारियां चल रही है इसी उपलक्ष्य में बिजनौर में होने वाले कबीर जयंती प्रोग्राम के साथ-साथ जुलूस का भी प्रोग्राम बनाया गया है। इस बार जुलूस बिजनौर जज्जी के चौराहे से चलकर बस स्टैंड, पोस्ट ऑफिस, एजाज अली हाल, सिविल लाइन होते हुए। राजमिलन बैंकट हॉल बिजनौर में समाप्त होगा। उसके बाद वहां पर भुइयार समाज की गोष्ठी होगी। इसी उपलक्ष्य में समाज के व्यक्तियों द्वारा बिजनौर शहर में जगह-जगह पर बड़े-बड़े बैनर लगवाएं हैं। मेरा भी एक बैनर शक्ति चौराहे से थोड़ा आगे नजीबाबाद बिजनौर रोड पर बैंक के सामने लगा हुआ है।
Daya Ram Singh Bhamra
Monday, June 10, 2024
Bhuiyar Educational Society Bijnor (9.6.2024)
भुइयार एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी जनपद बिजनौर के तत्वाधान में प्रतिभा सम्मान समारोह 09.06.2024 को बहुत ही सफल कार्यक्रम के रूप में रहा।
सादर प्रणाम!
भुइयार एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान में दिनांक 9 जून को राज मिलन बैंकट हॉल बिजनौर में आयोजित मेधावी विद्यार्थियों के सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि अधीक्षण अभियंता सिंचाई विभाग जनपद कानपुर से पधारे श्री धर्मेंद्र कुमार जी, कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए श्री दयाराम सिंह जी, विशिष्ट अतिथि अधिशासी अभियंता श्री सत्यपाल सिंह जी, एसडीओ श्री उमेश सिंह जी, वित्त मंत्रालय में सहायक आयुक्त श्री सुरेंद्र सिंह जी, इफको के उप प्रबंधक श्री राजवीर सिंह जी, एस एच ओ श्री धर्मपाल सिंह जी, इंस्पेक्टर श्री सत्यवीर सिंह जी, डॉ यशपाल सिंह जी, श्री दयाराम सिंह भामडा जी, जनपद हरदोई से पधारे शिक्षक राम बहादुर सिंह, शामली से आए शिक्षक श्री राधेश्याम जी, सहारनपुर से आए प्रधानाचार्य श्री मनोज सिंह जी देवबंद से आए शिक्षक श्री हेम सिंह जी सहित जिन महानुभावों ने सोसायटी द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में पधार कर कार्यक्रम की शोभा बढाई एवं सोसायटी को भरपूर सहयोग किया । आप सभी का सोसायटी की ओर से दिल की गहराइयों से आभार। आप सब की उपस्थिति से सोसायटी के पदाधिकारी ,सदस्य व पूरी टीम में नई ऊर्जा का संचार हुआ है ,इसके लिए हम आपके सदैव आभारी रहेंगे। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी है कि आगे भी हमें समय-समय पर आपकी गरिमामयी उपस्थित व सानिध्य प्राप्त होता रहेगा।🙏🙏
राजेंद्र कुमार भुइयार
अध्यक्ष
केशव शरण
महामंत्री
श्री तेजपाल सिंह भुइयार
कोषाध्यक्ष
समस्त टीम
भुइयार एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी बिजनौर🙏🙏🙏
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