Tuesday, January 25, 2022

Pokhara Nepal Tour

संस्मरण: "पोखरा नेपाल यात्रा" बच्चों का नेपाल में पोखरा जाने का विचार बना, तो उन्होंने अपनी मम्मी अर्थात कमलेश से यह बात बताई तो उन्होने यह बात मेरे से साझा की और कहा कि हम भी बच्चों सगं घूम आते हैं। वैसे भी हम कहीं घूमने नहीं जाते, इसी बहाने से बच्चों संग नेपाल घूम आएंगे। जब मैंने इस बारे में बच्चों से बात की तो प्रोग्राम बना नए साल पर, मैंने कहा कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में तो भयंकर सर्दी होती है मेरा मन दिसंबर के प्रथम सप्ताह में जाने का है, परंतु बच्चों ने बताया कि नए साल पर पोखरा में नव वर्ष फेस्टिवल होता है अत: हम नये में साल में पोखरा में रहेंगे। मेरा मन सर्दी के कारण जाने का नहीं था कि एक तो अत्यधिक सर्दी का मौसम दूसरे कोविड के बढ़ते हुए केस परंतु बच्चों की जिद थी जिसकारण से प्रोग्राम नव वर्ष में पोखरा जाने का बन गया, प्रोग्राम बना कि हरिद्वार से ट्रेन द्वारा गोरखपुर जाएंगे। गोरखपुर में छोटी बेटी और दामाद रहते हैं अतः 28 दिसंबर 2021 का रिजर्वेशन देहरादून गोरखपुर एक्सप्रेस में हरिद्वार से करा दिया। धीरे-धीरे दिन बीतते गए और नेपाल जाने का रोमांच बढ़ता गया। धीरे-धीरे ठंड ने भी अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया। 28 दिसंबर 2021 का दिन आ ही गया, मन में ठंड की दुविधा जरूर थी, परंतु मन में उत्साह भी काफी था, क्योंकि आज नेपाल यानी दूसरे देश की यात्रा के लिए जाना था। मैं सुबह उठकर तैयार होकर पहले तो दफ्तर चला गया क्योंकि हमारी ट्रेन शाम को 5:15 पर रवाना होनी थी। दफ्तर से सांय चार बजे छुट्टी लेकर वापस घर आ गया और अपना सारा जरूरी सामान पैक कर लिया। साथ में बड़ी बेटी शीतल बेटी के दोनों बच्चे को भी जाना था। वह एक दिन पहले ही सहारनपुर से हरिद्वार आ गए थे। अतः हम सब ने अपना-अपना सामान पैक कर लिया और घर से स्टेशन के लिए रवाना हो गए। बेटे गौरव ने हमें स्टेशन पर छोड़ दिया। गाड़ी अपने सही समय पर स्टेशन पर पहुंच गई। हमने अपना सारा सामान गाड़ी में चढ़ाया और अपनी -अपनी रिजर्व बर्थ पर बैठ गए। गाड़ी ने हरिद्वार रेलवे स्टेशन ठीक समय पर छोड़ दिया। समय बीतता गया और ट्रेन आगे बढ़ती गई। स्टेशन एक के बाद एक पीछे छूटते गए। इस प्रकार रात के लगभग 8:00 बज गए। हम सभी ने ट्रेन में ही रात्रि भोजन किया जो कि हम घर से ही बनाकर साथ लेकर गए थे रात्रि खाना खाने के बाद हम सो गए। इस प्रकार पता ही नहीं चला कि कब लखनऊ स्टेशन आ गया, सुबह आंखें खुली तो पता चला कि सुबह के 6:00 बजे है और हल्की-हल्की बारिश भी हो रही थी। बाहर ठंड बहुत थी परंतु डब्बे के अंदर का तापमान सामान्य था। आज तारीख 29 दिसंबर 2021 थी ट्रेन ने फैजाबाद स्टेशन पर पार किया, इसके बाद बस्ती स्टेशन पार किया तो खलीलाबाद स्टेशन आ गया। तब तक सुबह के 8:00 बज चुके थे इसके बाद गोरखपुर स्टेशन आने वाला था, धीरे-धीरे ट्रेन गोरखपुर स्टेशन की ओर बढ़ रही थी कुछ समय बाद गोरखपुर का आउटर सिग्नल आ गया | हमने अपना सामान इकट्ठा किया और खिड़की पर आ गए, गोरखपुर स्टेशन आ चुका था हमने अपना सारा सामान उतारा और स्टेशन से बाहर आकर विशाल को फोन किया। तो पता चला कि वह हमारा इंतजार पहले से ही कर रहे थे। अपना सारा सामान गाड़ी में पैक किया और छोटी बेटी स्वाति के यहां चले गए। इस समय लगभग 9:00 बज चुके थे यहां से ही हम सबको विशाल की गाड़ी से पोखरा यानी नेपाल को आज ही निकलना था। हल्की हल्की बारिश लगातार हो रही थी सो हमने स्नान करने के बाद नाश्ता किया। फिर हमने अपना सामान गाड़ी में पैक कर दिया यहां से हम सब ठीक 11:00 बजे पोखरा के लिए निकल पड़े। जब हम गोरखपुर से निकल ही निकले ही थे उस समय आसमान में बादल छाये हुये थे। परंतु कुछ दूर जाने के बाद हल्की बारिश शुरू हो गई मन में शंका थी कि कहीं बारिश टूर का मजा खराब ना कर दें। इस प्रकार लगभग 2:30 बजे हम सनौली बॉर्डर पर पहुंचे गए जो कि भारत-नेपाल बॉर्डर है। सनौली उत्तर प्रदेश राज्य के महाराजगंज जिले का एक छोटा सा कस्बा है जो कि भारत नेपाल बॉर्डर पर स्थित है। यहां पर से ही भारत के लोग नेपाल में प्रवेश करते हैं एवं नेपाल के लोग भारत में प्रवेश करते है। यहां आते आते बारिश काफी तेज होने लगी थी, परंतु मन में उत्साह था कि अब हम नेपाल में प्रवेश करने वाले हैं। हम अपनी गाड़ी लेकर चैक पॉइंट पर गए वहां पर पहले से ही मौजूद भारतीय बीएसएफ के जवानों ने हमारी गाड़ी चेक की। फिर नेपाल पुलिस ने चेक की। यहां आपकी जानकारी के लिए बताना चाहुँगा, कि नेपाल में प्रवेश के लिए केवल आधार कार्ड, वोटर आईडी, एवं यदि आप किसी किसी सरकारी कंपनी में कार्यरत है तो उसका आई कार्ड आदि की ही आवश्यकता होती है कोई पासपोर्ट अथवा वीजा की जरूरत नहीं होती। यदि आप भारतीय हो। यदि आप अपनी गाड़ी से जा रहे हो तो एक प्रपत्र बनता है जिसे “भनसार” कहते हैं उसी में यह अंकित होता है कि कितने लोग कितने दिन के लिए नेपाल में स्टे करेंगे। हम तो अपनी गाड़ी से जा रहे थे तो हमने गाड़ी का “भनसार” बनवाया और कुछ भारतीय मुद्रा को नेपाल की मुद्रा में बॉर्डर पर ही बदलवा लिया। भारतीय 100 रुपये नेपाल के 160 रुपये के बराबर होते हैं। यह कार्य हमने एक एजेंट के द्वारा करा लिया। जिस वजह से बॉर्डर पर अधिक समय नहीं लगा लगभग एक घंटे में सारे कार्य हो गए। कोविड प्रोटोकॉल के तहत हमें अपनी सभी वयस्क व्यक्तियों की निगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट बार्डर पर ही जमा करानी थी। जो कि हमारे पास पहले से ही थी वह भी हमने बॉर्डर पर ही जमा कर दी और इस प्रकार हम नेपाल में प्रवेश कर गए। दिन के लगभग चार बज गए थे। हमने भारत के हाईवे एनएच-24 से नेपाल में प्रवेश किया। नेपाल में जा कर यह मोटर मार्ग एच-10 हो जाता है जिसको सिद्धार्थ मार्ग भी कहा जाता है। बारिश बहुत तेज होने लगी थी ठंड भी अपने पूरे यौवन पर थी। परंतु हम सब गाड़ी में मौज मस्ती करते आगे बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे हम एच-10 मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे बारिश भी अपना जलवा दिखा रही थी। कुछ समय समतल में चलने के बाद धीरे-धीरे पहाड़ों का नजारा आने लगा। बारिश भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। शाम के लगभग 6:00 बजे एक जगह हमने चाय पीने के लिए गाडी रोकनी चाही परंतु बारिश इतनी ज्यादा थी कि गाड़ी से उतरना मुश्किल हो रहा था। हमने यह प्लान त्याग दिया और अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ गए। धीरे-धीरे बारिश कुछ कम हुई तो पहाड़ी का एक मोड़ आया जहां पर कुछ चाय वाले ढाबे दिखाई दिए। हमने अपनी गाड़ी रोक दी और चाय और गरम-2 पकौड़ी का ऑर्डर दे दिया। परंतु कुछ ही देर में भयंकर बारिश होने लगी एवं ठंडी-2 हवा चलने लगी। हम सब भट्टी के सामने हाथ सेकने के लिए खड़े हो गए तब जाकर कुछ राहत मिल पाई। हवा इतनी ठंडी थी कि भट्टी के सामने भी राहत नहीं मिल पा रही थी। हमने जल्दी-2 चाय पी और अपनी मंजिल की ओर चल दिये। बारिश मानो कह रही थी कि मैं अब रुकने का नाम नहीं लूंगी। परंतु हम भी अपनी मंजिल पर धीरे-2 आगे बढ़ ही रहे थे। रात्री के लगभग 8:00 बज चुके थे, तभी होटल मिडिल पाथ पोखरा से विशाल के नंबर पर फोन आया कि आप लोग कहां पर हो। क्योंकि हमने होटल की एडवांस बुकिंग की हुई थी तब विशाल ने उस जगह का नाम बताया जहां पर हम लोगों की लोकेशन थी। विशाल ने होटल के रिसेपशन पर बता दिया कि हम लोग रात्रि के 9:00 बजे तक पोखरा पहुंच जाएंगे। सभी काफी थक चुके थे, क्योंकि गाड़ी में बैठे-2 पहाड़ी रास्ते पर थकान हो रही थी। परंतु सफर में हम सबको पूरी मस्ती आ रही थी। इस प्रकार हम ने अपना सफर पूरा किया और पोखरा होटल में रात्रि 9:15 बजे हम पहुंच गए। हमने होटल में चाय ली फिर चेक इन किया। सभी ने फ्रेश होकर होटल में ही रात्रि भोजन किया और अपने-2 कमरों में जाकर सो गए| इस प्रकार आज का दिन हमारा सफर में ही बीत गया। सभी लोग कल के सफर में थक चुके थे इस कारण आज 30 दिसंबर 2021 की सुबह देर से उठना हुआ। सुबह 9:00 बजे हमने नाश्ता किया और घूमने के लिए तैयार हो गए। पोखरा का तपमान तो आज सामान्य था। आज धूप खिल रही थी। हम सब होटल से पैदल ही झील देखने के लिए निकल पड़े। होटल से लेक कुछ कदम दूरी पर ही थी। लेक पर जाकर देखा कि वहां पर लोग वोटिंग कर रहे हैं। हमने भी एक वोट जो कि स्वयं दो आदमी चला सकते थे, किराए पर ले ली। इस बोट की छमता दस लोगों के बैठने की थी। इसका किराया एक घंटे के लिए 1450 नेपाली रुपये था। हम सभी ने लाइफ जैकेट पहनकर बोट पर सवार हो गए। पहले वोट मैंने और विशाल ने चलाई फिर बारी-बारी से सभी ने चलाई। बोट चलाने का एक अलग ही आनंद था। सभी खूब फोटोग्राफिक और वीडियोग्राफी भी कर रहे। झील के बीच में एक मंदिर था उस मंदिर पर भी काफी भीड़ थी वहां पर हम अपनी बोट को लेकर गये तो देखा कि मंदिर के जाने वाले रास्ते पर भीड़ ज्यादा थी इस कारण हमने मंदिर में जाने का इरादा त्याग दिया और अपनी बोट को दूसरे किनारे की आगे बढा दिया। झील के दूसरे किनारे की ओर पर गए जहां पर मनुष्य नहीं जा सकता था वहां का दृष्य भी हमने देखा। उसी किनारे पर कुछ दूरी पर देखा कि कुछ मंदिर के तरह के मठ बने हुए हैं जो कि काफी दूर थे। वहां पर मनुष्य भी दिखाई दिए । इस पर सभी एक घंटे तक झील में काफी मौज मस्ती करते रहे और एक घंटे का समय कब बीत गया पता ही नहीं चला। हम सब वापस स्टेशन पर आ गए। बोट से उतरकर हमने अपनी लाइफ जैकेट उतारी और बाहर आ गए, तो देखा एक आदमी स्टैचू की तरह बना खड़ा है। वहां पर लोगों की भीड़ भी लगी हुई थी। सभी लोगों ने वहां पर फोटो खिंचाई और झील के किनारे लगी स्टाल एवं दुकानों का नजारा देख कर आगे बढे। इसी जगह पर एक खेल चल रहा था एक मिट्टी का मटका रखा हुआ था। उसको आंखों पर पट्टी बांधकर तोड़ना था। इसका टिकट 200 नेपाली रुपए था यदि मटका फोड़ दिया तो वह आपको 400 नेपाली रुपये देंगे। इस खेल में 95% लोग फेल हो रहे थे। खेल कुछ इस तरह था। मटका कुछ दूरी पर रखा रहता है और लगभग 10 मीटर की दूरी पर आदमी को ले जाकर उसकी आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। फिर उसे घुमा कर छोड़ दिया जाता। इस खेल को अनाया एवं विशाल ने भी बड़ी सतर्कता के साथ खेला परंतु लक्ष्य पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद हमने लंच किया और फिर बाजार में घूमने के बाद वापस होटल आ गए। बाजार भी सामान्य था, जैसे भारत में होते हैं लगभग वैसे ही बाजार थे। एक जरूर बदलाव देखने को मिला कि हर दुकान पर शराब एवं बियर मिलती है। बाजार में रौनक भी सामान्य थी अधिक भीड़ नहीं थी। इस प्रकार आज का दिन भी बीत गया। हम सब होटल आ गए और आराम किया। शाम को विचार बना कि मेले में घूमने चलेंगे जो कि लेक के किनारे पर बड़े-बड़े झूले लगे हुए थे। वहां पर ही हमने रात्रि खाना खाया और बच्चों को झूला झुलाया फिर हम रात को सभी लोग होटल आ गए। अगले दिन यानी 31 दिसंबर 2021 को बच्चों का प्लान पैराग्लाइडिंग करने का था। सभी सुबह उठे और स्नान आदि करने के बाद नाश्ता किया। मुझे और कमलेश को पैराग्लाइडिंग नहीं करनी थी तो हमने दोनों ने प्लान बनाया कि दोनों बच्चों को लेकर हम लोग झील के किनारे लगे बाजार में घूम कर आएंगे। हमने सब होटल से घूमने के लिए निकल लिए। विशाल, स्वाति एवं शीतल पैराग्लाइडिंग के लिए गाड़ी द्वारा होटल से ही जाने वाले थे। परंतु उन्होंने पैराग्लाइडिंग टीम को फोन पर बताया कि वे लोग आपको झील के उस पर पार होटल वाटर साइड पर मिल जाएंगे वहीं से ले लेना। अत: वह भी हमारे साथ फोटोग्राफी करते हुए झील के उत्तर दिशा में स्थित होटल वाटर साइड के पार्क में जाकर बैठ गए, और पराकला पराग्लाइडिंग टीम को फोन करके बता दिया कि हम इस होटल में बैठे हुए हैं वहीं से ले लेना। मैं और कमलेश तथा दोनों बच्चे वहीं पर लोन में बैठ गए। हमने वहीं होटल में दोपहर का खाना खाया एवं होटल के पार्क में बैठकर उनका इंतजार करते रहे। क्योंकि पैराग्लाइडिंग लैंडिंग पॉइंट यहीं पर था। परंतु काफी देर के बाद भी जब पैराग्लाइडिंग शुरू नहीं हुई तो मैंने फोन किया तो पता चला कि हवा न चलने के कारण आज पैराग्लाइडिंग नहीं हो पाएंगी। अतः मैंने कुछ वहां के फोटो लिए एवं वीडियो भी बनाए। लगभग सांय चार बजे हम लोग वहां से चल दिए एवं पैदल-पैदल लेक के किनारे मनमोहक दृश्य देखते हुए हम वापस होटल आ गए। कुछ देर बाद बच्चे भी वापस होटल आ गए। वह बहुत मायूस लग रहे थे क्योंकि उनका आज का दिन बेकार रहा। उनका पैराग्लाइडिंग का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। परंतु आज रात को ही नववर्ष फेस्टिवल शुरू होने वाला था। इसकारण मन को थोड़ा सकून था। मन में जिज्ञासा थी कि आज की रात कैसी होने वाली है। जिसके लिए हम यहां आए हैं, उसका इंतजार था। यह नववर्ष फेस्टिवल पांच दिन चलता है परंतु स्थानीय प्रशासन ने कोविड प्रोटोकोल के तहत इसे पांच दिन की बजाय तीन दिन कर दिया था। हमने होटल में रात्रि का भोजन किया और 11:00 बजे होटल से निकल कर उस स्ट्रिट पर पहुंच गए जहां पर नववर्ष फेस्टिवल शुरू हो चुका था। यह होटल से कुछ दूरी पर ही एक मेन बाजार की रोड है जिस पर शाम 6:00 से ही ट्रैफिक को पूर्णतया बंद कर दिया जाता है। यह रोड लगभग पांच से दस किलोमीटर लंबी है इसमें केवल पैदल यात्री ही चल सकते है। रोड के दोनों ओर खाने पीने के स्टॉल लगे होते हैं और सभी दुकानों पर शराब एवं बियर मिलती है। नववर्ष फेस्टिवल में अधिकतर परिवार सहित होते हैं, क्या बूढ़े? क्या जवान? एवं बच्चे सब खाते हैं, पीते हैं, और नाचते गाते हैं। अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश के होते हैं। जगह-जगह रोड पर आर्केस्ट्रा पार्टी भी होती है। कहीं-कहीं पर डीजे पर गाने बजते हैं, उनमें भोजपुरी एवं हिंदी फिल्में गाने भी होते हैं। नेपाली गाने भी खूब बजाये जाते है। भीड़ इतनी होती है, कि कोई खो जाए तो मिल न सकेगा। बस रोड पर लोग ही लोग दिखाई देते हैं रोड पर ऐसा लगता है कि नदी की दो धाराएं विपरित दिशा में चलरही है। अधिकतर लोगों ने चाहे वह लड़की हो अथवा लड़का शराब अथवा बीयर का सेवन किया हुआ होता है। कुछ दूर तक तो हमने भी भीड़ के साथ चलने की पूरी कोशिश की परंतु भीड़ इतनी अधिक थी, कि चलना भी मुश्किल हो रहा था । इस कारण हम सब एक साइड में खड़े होकर वहां का नजारा देखने लगे। एक जगह पर आर्केस्टा बज रहा था, हमने वही पर आनंद लेना बेहतर समझा। इस प्रकार हम वहां से रात्रि 12:30 बजे वापस होटल आकर सो गए। नये साल की अलसुबह यानी 1 जनवरी 2022 को सोकर उठे और स्नान कर नाश्ता किया, तैयार होकर हम सब अल्ट्रालाइट के लिए पोखरा एयरपोर्ट पर दोपहर 1:00 बजे पहुंच गये। हमने अपने बोर्डिंग पास बनवाए एवं अंदर प्रवेश किया, वहां पर अल्ट्रालाइट का एक कर्मचारी हमें उस पॉइंट पर छोड़ आया जिस पॉइंट से उड़ान भरनी थी। कुछ देर बाद हमारा नंबर आ गया। सबसे पहले मुझे जाना था, मैं उस जहाज में सवार हो गया, तो मुझे एक लेडी कर्मचारी ने सुरक्षा के सारे पॉइंट बता दिए, तथा मेरी सेफ्टी बेल्ट बांध दी गई। यह दो शीटर हल्का फ्लाइंग जहाज होता है, जिसमें पायलट आगे बैठता है और उसके पीछे वाली सीट पर एक सवारी बैठती है। यह स्कूटी की तरह का होता है जो खुला हुआ होता है। दोनों व्यक्ति खुले में होते हैं। हमारा जहाज उड़ने के लिए तैयार था एक पंख पर कैमरा लगा हुआ था जिसमें फिल्म और फोटो बनते रहते हैं। हमारी फ्लाइट 15 मिनट की थी, जिसका किराया 8500 नेपाली रुपए था। पायलेट ने जहाज उड़ना शुरू किया, तो शुरू में तो थोड़ा डर महसूस हुआ, परंतु बाद में जब हम ऊपर चले गए तो पूरा रोमांच आ रहा था। हमें लगभग दो हजार से ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर पोखरा शहर एवं पोखरा झील के ऊपर उड़ रहे थे। ऊपर से शहर का विहंगम नज़ारा देखकर पूरा रोमांच आ रहा था। ऊपर काफी ठंड भी लग रही थी, इस प्रकार लगभग 18 मिनट उड़ने के बाद हम वापस पोखरा एयरपोर्ट पर आ गए। इसी प्रकार सभी ने बारी-बारी से उड़ान भरी और पूरे पोखरा शहर का नजारा देखा। अल्ट्रालाईट की यात्रा करने के बाद हम 5:30 बजे वापस होटल आ गए, क्योंकि आज ही हमें होटल से चेक आउट करना था। पहले हमारा प्रोग्राम नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन करने का था। परंतु समय के अभाव के कारण हमारा काठमांडु जाने का प्लान बदल गया। हमें 3 जनवरी 2022 को नेपाल बॉर्डर पर अपना “भनसार” भी जमा करवाना था, इस कारण काठमांडू जाने का प्लान रद्द कर, चितवन नेशनल पार्क जाने का प्रोग्राम बनाया। हमने होटल का बिल चुकता किया और शाम 6:00 बजे पोखरा से चितवन के लिए निकल पड़े। पोखरा से यह दूरी लगभग 150 किलोमीटर की थी, रास्ते में बड़े-बड़े पर्वत भी थे। हमने अपनी गाड़ी को चितवन की ओर दौड़ा दिया। लगभग चार घंटे का सफर तय करके हम रात्रि 10:30 बजे के आसपास चितवन पहुंच गए। रास्ते में कोहरा था एवं घुमावदार पहाड़ी रास्ता था, इसके बावजूद हम रात्रि 10:30 बजे चितवन पहुंच गए। हमने होटल जंगल सफारी रिजॉर्ट पहले से ही बुक किया हुआ था। हमने रात्रि खाना खाने के बाद सो गये, क्योंकि सुबह को जल्दी उठकर जंगल सफारी के लिए जाना था। जंगल सफारी पर जाने का सुबह का 9:00 बजे का समय रखा गया। हम सब सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गए आज 2 जनवरी 2022 का दिन था और जंगल सफारी के लिए गाड़ी में बैठ गए। हमारे साथ एक गाइड एवं ड्राइवर भी था, जो गाड़ी चला रहा था। गाड़ी ने हमें एक नदी जिसका नाम राप्ती था, के किनारे छोड़ दिया। सुबह-सुबह ठंड भी अत्यधिक थी, हम सब ने पानी की बोतलें पकड़ ली और जो हमारे साथ गाइड एवं ड्राईवर था उन्होंने होटल से दिया हुआ, खाने का सामान उठाकर नाव के सहारे हमें नदी पार करा दी। नदी के उस पार सफारी गाड़ी खड़ी थी। हम सब उस सफारी गाड़ी में बैठ गए। आसमान में बादल छाए हुए थे कोहरा तो नहीं था परंतु सूरज दिखाई नही दे रहा था। मौसम काफी ठंडा था, परंतु जंगल सफारी का रोमांच इतना था कि ठंड का भी पता नहीं चल रहा था। यह गाड़ी खुली जीप की तरह होती है, हमारे साथ आया गाइड भी हमारे साथ बैठ गया। उसने हमें जंगल के बारे में बताना शुरू किया, हमें जंगल में क्या-2 सावधानी रखनी है। गाईड ने बताया कि इस नेशनल पार्क को 1973 में नेशनल पार्क घोषित किया गया था। उन्होंने जंगली जानवरों के बारे में भी बताया, कि यहां पर चीते, भालू, सांभर, बंदर, गैंडे, हिरन, हाथी, घड़ियाल, चीतल, एवं रंग-बिरंगे पक्षी है। अब हमारा जंगल का सफर शुरू हो चुका था। यह सफर पूरे दिन का था। गाईड ने हमें बताया कि चितवन नेशनल पार्क का कुल क्षेत्रफल 950 किलोमीटर है तथा यहां पर जंगली गैंडों की कुल जनसंख्या 900 के आसपास है। उन्होंने बताया कि पहले चीनी लोग यहां आकर गैंडों का शिकार करते थे, और स्थानीय लोगों को एक इसके बदले में काफी पैसे देते थे, परंतु नेशनल पार्क घोषित होने के बाद यहां शिकार करना बंद हो गया। हमारी गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। सबसे पहले हमने हिरनों का एक बड़ा झुंड देखा उसके बाद उनके फोटो लिए। जंगल के बीच में विचित्र पेड़ भी देखने को मिले। इन विचित्र पेड़ों के कुछ छाया चित्र भी हमने लिए और आगे चल दिये। हम कुछ दुरी पर ही हये थे, कि हमें एक भालू दिखाई दिया। जो गाइड हमारे साथ थे वह बहुत ही सतर्क रहते थे, जैसे ही कोई जानवर उनको दिखाई देता था, वह हमें तुरंत बता देते थे। यदि ड्राइवर को कोई जानवर दिखाई दिया तो वह भी हमें वह गाड़ी को रोक लेते थे। इस प्रकार हमआगे बढ़ते गए और घने जंगल आते गए। एक जगह पर दलदली जगह थी, वहां पर देखा कि एक गैंडा कुछ खा रहा था, जैसे ही हमारी गाड़ी रुकी वहां से वह भागने लगा, तो तब तक हमने उसके फोटो खींच लिये। गाइड ने सुरक्षा की दृष्टि से सबको गाड़ी से नीचे उतरने का पहले ही मना किया हुआ था। इस प्रकार हमारी गाड़ी घने जंगलों से गुजर रही थी। बच्चे भी पूरी मौज मस्ती कर रहे थे। धीरे-धीरे समय बीत रहा था और हम आगे बढ़ रहे थे। एक जगह पर लंबी लंबी घास का मैदान आया वहां पर जब पहुंचे, तो दोपहर के एक बज चुके थे। वहां एक तीन मंजिला लकड़ी का मचान बना हुआ था। मचान पर हम सब ऊपर चढ गये, उपर बैठकर साथ लाया खाना खाया, एवं कुछ वहां से फोटोग्राफी भी की। कुछ देर वहां बिताने के बाद हम फिर जंगल सफारी के लिए चल दिए। रास्ते में जगह-जगह पर नेपाल सेना की चेकपोस्ट भी मिलती गई एवं रास्ते भर में रंग-बिरंगे पक्षी भी दिखाई दिए। एक नदी पर मगरमच्छ एवं घड़ियाल दिखाई दिए। जंगल में जंगली जानवरों पक्षियों की अलग-अलग आवाजें सुनाई दे रही थी। हम आगे बढ़ते गए एक जगह पर हाथियों का झुंड था, जो कि फालतू थे, वहीं पर मगरमच्छ प्रजनन केंद्र था। जहां पर हजारों मगरमच्छ एवं घड़ियाल थे। यहां पर कुछ फोटो ग्राफी करने के बाद वहां से चल दिए, रास्ते में लंगूर, बंदर, रंगबिरंगे पक्षी, मोर, कस्तुरी मृग आदि के दर्शन हुए। जंगल का सफर करते-2 शाम के 5:00 बज चुके थे। और सूरज भी अस्त होने लगा था। अतः हम वापस उसी स्थान पर आ गए जहां से नदी पार की थी। गाइड ने हमारे लिए नाव लगवाई और हम सब नाव में बैठकर नदी पार की। हम सीधे होटल चले गए, दिन भर खुली जीप में बैठे-बैठे सभी थक चुके थे। हमने होटल में रात्रि भोजन किया और पास में ही थारू कल्चरल डांस का प्रोग्राम चलरहा था, कुछ देर वहां पर प्रोग्राम का आन्नद लिया। इसके बाद होटल में आकर कुछ गप्पे लड़ाई और फिर सो गए। आज दिनांक 3 जनवरी 2022 था, हमें आज वापस गोरखपुर भी जाना था क्योंकि आज रात्रि को 9:00 बजे हमारी वापसी के लिए गोरखपुर से ट्रेन थी साथ-2 “भनसार” भी आज तक का ही बनवाया हुआ था जोकि आज ही बोर्डर पर जमा करना था। अतः हम सबने सुबह जल्दी उठकर स्नान किया और तैयार होकर होटल में नाश्ता किया। हमने होटल से चेक-आउट किया और गाड़ी में सारा सामान पैक कर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर दिया। रास्ते भर कोहरा, बरसात ने तो परेशान किया ही साथ-2 रोड़ भी बहुत खराब थी उससे भी बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। जगह-जगह पर मोड़, गड्ढे, पहाड़ आदि ने सफर को थकान भरा बना दिया था। रास्ते में ही हमने लंच किया और फिर गाड़ी आगे बढ़ा दी। इसप्रकार हम दोपहर लगभग 2:00 बजे नेपाल भारत बॉर्डर ठूठीबाड़ी पर पहुंच गए। हमने वहां पर “भनसार” दिखाया और एंटी करवाई तथा भारतीय जवानों ने हमारी गाड़ी चेक की। इसप्रकार हमने भारत की सीमा में प्रवेश कर दिया कर सीधे गोरखपुर आ गये। गोरखपुर आने के बाद हमने हल्का नाश्ता किया और रात्रि 8:30 बजे गोरखपुर स्टेशन पर आ गये। हमारी ट्रेन रात्रि नौ बजे की थी जिकि अपने समय पर स्टेशन पहुंच गई। हमने अपना सामन ट्रेन में सेट किया और अपनी-2 बर्थ पर सो गये। अगले दिन हमारी ट्रेन कुछ लेट हरिद्वार स्टेशन पर पहुंच गई। बेटा गौरव पहले ही स्टेशन पर हमें लेनें आ गया था सो हम ट्रेन से उतरे और अपनी गाड़ी द्वारा अपने घर पहुंच गये। इस यात्रा का काफी अच्छा अनुभव रहा एक और जहां कुछ परेशानियाँ आई वहीं मौज मस्ती भी बहुत आई। एक नया शहर नया देश का अनुभव महसूस किया। नेपाल के फैस्टिवल किस तरह के होते है उनका भी अनुभव हुआ। साराशं रूप में यात्रा का पुरा आन्नद आया। दयाराम सिंह भामड़ा / Daya Ram Singh Bhamra भेल शिवालिक नगर हरिद्वार / Bhel Shivalik Nagar Haridwar